वर्तमान की ज्वलंत समस्या
हर माता-पिता चाहे वह अमीर हो या गरीब उनकी एक ही तमन्ना होती है की उसकी संतानें पढ़-लिखकर उन्नति के शिखर पर सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त करें। इसके लिए वे हर प्रकार का त्याग करते हैं। अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई को अपने बच्चों के पालन-पोषण और पढाई-लिखी में खर्च कर देते हैं। किन्तु बच्चे पढ़ लिखकर कैरियर में अच्छा मुकाम हासिल कर लेते हैं तो वे अपने उन्हीं माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं।
जिन्होंने उनकी उन्नति के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया है। भौतिकवादी संस्कृति के वशीभूत होकर शिक्षित व समर्थ नवयुवक-नवयुवतियों अपने बच्चों के साथ एकल परिवार के रूप में रहना अपनी शान समझते हैं। शायद वे इस सत्य से अनभिग्य हैं की उन्हें भी एक दिन बूढा होना है। वर्तमान की इस ज्वलंत समस्या के चलते असंख्य बूढ़े माता-पिता या तो घर के एक कोने में उपेक्षित पड़े रहते हैं अथवा वृद्धाश्रमों में जाकर शेष दिन काटने के लिए मजबूर हैं। आने वाले समय में यह समस्या विकराल रूप ले इसके पहले समय रहते हम सबको मिलकर वैचारिक क्रांति छेड़नी होगी।
_बी डी सिंह सोलंकी
Friday, March 18, 2011
Thursday, March 17, 2011
मैं भारत की नारी हूँ
मुझको कोई फूल न समझे, छुपी हुई चिंगारी हूँ।
अरि का शीश काटने वाली मैं भारत की नारी हूँ
त्याग भरा है पन्ना मां का,
जौहर पद्मिनी नारी का।
शीश उतारूँ रन रंगन में,
लेकर शूल भवानी का॥
रन में धूम मचाने वाली, मैं झाँसी की रानी हूँ।
अरि का शीश काटने वाली,मैं भारत की नारी हूँ॥
अग्नि परीक्षा देने वाली,
सीता की तस्वीर हूँ मैं।
सावित्री का पवन व्रत हूँ मैं ,
सत्यवान तकदीर हूँ मैं॥
देवों को पालने झुलाती, अनुसुइया सी नारी हूँ।
सिंहवाहिनी दुर्गा हूँ मैं, मैं भारत की नारी हूँ॥
फूल भी हूँ, शबनम भी हूँ,
पति का पवन श्रृंगार भी हूँ।
मुझको देखे कोई कुदृष्टि से,
तो उस पापी का अंगार हूँ मैं॥
ले कतार छाती पर चढ़ती, मैं भारत की छत्रानी हूँ।
अरि का शीश काटने वाली, मैं भारत की नारी हूँ॥
_शिवांगी सिसोदिया, ग्राम- नगला भोजपुर, पोस्ट- कुस्मारा, जिला- मैनपुरी, (उ. प्रदेश)
अरि का शीश काटने वाली मैं भारत की नारी हूँ
त्याग भरा है पन्ना मां का,
जौहर पद्मिनी नारी का।
शीश उतारूँ रन रंगन में,
लेकर शूल भवानी का॥
रन में धूम मचाने वाली, मैं झाँसी की रानी हूँ।
अरि का शीश काटने वाली,मैं भारत की नारी हूँ॥
अग्नि परीक्षा देने वाली,
सीता की तस्वीर हूँ मैं।
सावित्री का पवन व्रत हूँ मैं ,
सत्यवान तकदीर हूँ मैं॥
देवों को पालने झुलाती, अनुसुइया सी नारी हूँ।
सिंहवाहिनी दुर्गा हूँ मैं, मैं भारत की नारी हूँ॥
फूल भी हूँ, शबनम भी हूँ,
पति का पवन श्रृंगार भी हूँ।
मुझको देखे कोई कुदृष्टि से,
तो उस पापी का अंगार हूँ मैं॥
ले कतार छाती पर चढ़ती, मैं भारत की छत्रानी हूँ।
अरि का शीश काटने वाली, मैं भारत की नारी हूँ॥
_शिवांगी सिसोदिया, ग्राम- नगला भोजपुर, पोस्ट- कुस्मारा, जिला- मैनपुरी, (उ. प्रदेश)
एक गीत
झंडा तिरंगा मेरी जान है,
मेरे भारत की पहचान है।
झंडे तिरंगे में तीन है रंग,
देश की खातिर निकला था दम।
याद जो वीरों की आती है,
आँख मेरी भर आती है।
वीरों ने कितने उठाए थे सितम,
झंडा तिरंगा ऊँचा रहे हर दम।
तिरंगा झंडा मेरी जान है,
मेरे भारत की पहचान है।
-सीमा सिसोदिया, ग्राम-- नगला भोजपुर, पोस्ट कुश्मरा, जिला- मैनपुरी (उ.प्र.)
मेरे भारत की पहचान है।
झंडे तिरंगे में तीन है रंग,
देश की खातिर निकला था दम।
याद जो वीरों की आती है,
आँख मेरी भर आती है।
वीरों ने कितने उठाए थे सितम,
झंडा तिरंगा ऊँचा रहे हर दम।
तिरंगा झंडा मेरी जान है,
मेरे भारत की पहचान है।
-सीमा सिसोदिया, ग्राम-- नगला भोजपुर, पोस्ट कुश्मरा, जिला- मैनपुरी (उ.प्र.)
Tuesday, March 15, 2011
संगठन में शक्ति है
एकता ही समाज का दीपक है- एकता ही शांति का खजाना है। संगठन ही सर्वोत्कृषष्ट शक्ति है। संगठन ही समाजोत्थान का अधर है। संगठन बिन समाज का उत्थान संभव नहीं। एकता के बिना समाज आदर्श स्थापित नहीं कर सकता।, क्योंकि एकता ही समाज एवं देश के लिए अमोघ शक्ति है, किन्तु विघटन समाज के लिए विनाशक शक्ति है। विघटन समाज को तोड़ता है और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट एवं समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित होकर एक जाए तो वः हठी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांध सकता है। किन्तु वे धागे यदि अलग-अलग रहें तो वे एक तृण को भी बंधने में असमर्थ होते हैं। विघटित ५०० से - संगठित ५ श्रेष्ठ हैं। संगठन छे किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो, वह सदैव अच्छा होता है- संगठन ही प्रगति का प्रतीक है, जिस घर में संगठन होता है उस घर में सदैव शांति एवं सुख की वर्षा होती है। चाहे व्यक्ति गरीब ही क्यों न हो, किन्तु यदि उसके घर-परिवार में संगठन है अर्थात सभी मिलकर एक हैं तो वह कभी भी दुखी नहीं हो सकता, लेकिन जहाँ या जिस घर में विघटन है अर्थात एकता नहीं है तो उस घर में चाहे कितना भी धन, वैभव हो किन्तु विघटन, फूट हो तो हानि ही हाथ आती है।
एकता बहुत बड़ी उपलब्धि है, जहाँ एकता है वहां कोई भी विद्रोही शक्ति सफल नहीं हो सकती है, जहाँ संगठन है वहां बहुत बड़ा बोझ उठाना भारी नहीं लगता। जहाँ संगठन है, एकता है वहां हमेशा प्रेम-वात्सल्य बरसता है- एकता ही प्रेम को जन्म देती है, एकता ही विकास को गति देती है।
रावण की अक्षोहीनी सेना का संहार हो गया, कौरवों का विध्वंस हो गया, क्योंकी मात्र आपस की फूट से, विघटन से रावण ने अनीति, अत्याचार की और कदम बढाया, यह सब विभीषण को सहन नहीं हुआ, भाई ने ही भाई का रहस्य बतला दिया, घर में फूट हो गई। मात्र उसी फूट से ही रवां परस्त हुआ क्यों की घर में एकता नहीं थी। जहाँ अनीति और अत्याचार प्रारंभ हो जाता है वहां से ही विघटन प्रारंभ हो जाता है। विघटन से ही फूट और फूट से व्यक्ति का विनाश हो जाता है। कौरव सौ होकर भी पांच पांडव से परस्त हो गए, क्यों ? क्योंकि पांडव भले ही पांच थे किन्तु पाँचों एक थे, एक ही धागे में पिरोये हुए थे, धागा यदि संगठित होकर एक हो जाए तो उसी धागे से बड़े जानवर को भी बाँधने में समर्थ हो जाते हैं किन्तु वह बिखरकर अलग हो जाएँ तो जीर्ण तरन को भी बाँधने में समर्थ नहीं होते, टूट जाएँगे। बिखरा हुआ व्यक्ति टूटता है- बिखरा समाज टूटता है- बिखराव में उन्नति नहीं अवनति होती है- बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा, वह कभी भी परास्त नहीं हो सकता- क्योंकि एकता ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है, किन्तु जहाँ विघटन है, एकता नहीं है उस समाज पर चाहे कोई भी आक्रमण कर विध्वंस कर देगा। इसलिए ५०० विघटित व्यक्तियों से ५ संगठित व्यक्ति श्रेष्ठ हैं, बहुत बड़े विघटित समाज से छोटा सा संगठित समाज श्रेष्ठ है। यदि समाज को आदर्शशील बनाना चाहते हो तो एकता की और कदम बढाओ।
समाज एकता की चर्चा करने के पूर्व आवश्यकता है- घर की एकता, परिवार की एकता की। क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं। एकता ही समाज को विकासशील बना सकती है। समाज के संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है। इसलिए हम सब के लिए यही संकेत है की एकता के सूत्र को चरितार्थ कर समाज को गौरवान्वित करें.... मनोहर सिंह चौहान, एडवोकेट
एकता बहुत बड़ी उपलब्धि है, जहाँ एकता है वहां कोई भी विद्रोही शक्ति सफल नहीं हो सकती है, जहाँ संगठन है वहां बहुत बड़ा बोझ उठाना भारी नहीं लगता। जहाँ संगठन है, एकता है वहां हमेशा प्रेम-वात्सल्य बरसता है- एकता ही प्रेम को जन्म देती है, एकता ही विकास को गति देती है।
रावण की अक्षोहीनी सेना का संहार हो गया, कौरवों का विध्वंस हो गया, क्योंकी मात्र आपस की फूट से, विघटन से रावण ने अनीति, अत्याचार की और कदम बढाया, यह सब विभीषण को सहन नहीं हुआ, भाई ने ही भाई का रहस्य बतला दिया, घर में फूट हो गई। मात्र उसी फूट से ही रवां परस्त हुआ क्यों की घर में एकता नहीं थी। जहाँ अनीति और अत्याचार प्रारंभ हो जाता है वहां से ही विघटन प्रारंभ हो जाता है। विघटन से ही फूट और फूट से व्यक्ति का विनाश हो जाता है। कौरव सौ होकर भी पांच पांडव से परस्त हो गए, क्यों ? क्योंकि पांडव भले ही पांच थे किन्तु पाँचों एक थे, एक ही धागे में पिरोये हुए थे, धागा यदि संगठित होकर एक हो जाए तो उसी धागे से बड़े जानवर को भी बाँधने में समर्थ हो जाते हैं किन्तु वह बिखरकर अलग हो जाएँ तो जीर्ण तरन को भी बाँधने में समर्थ नहीं होते, टूट जाएँगे। बिखरा हुआ व्यक्ति टूटता है- बिखरा समाज टूटता है- बिखराव में उन्नति नहीं अवनति होती है- बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा, वह कभी भी परास्त नहीं हो सकता- क्योंकि एकता ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है, किन्तु जहाँ विघटन है, एकता नहीं है उस समाज पर चाहे कोई भी आक्रमण कर विध्वंस कर देगा। इसलिए ५०० विघटित व्यक्तियों से ५ संगठित व्यक्ति श्रेष्ठ हैं, बहुत बड़े विघटित समाज से छोटा सा संगठित समाज श्रेष्ठ है। यदि समाज को आदर्शशील बनाना चाहते हो तो एकता की और कदम बढाओ।
समाज एकता की चर्चा करने के पूर्व आवश्यकता है- घर की एकता, परिवार की एकता की। क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं। एकता ही समाज को विकासशील बना सकती है। समाज के संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है। इसलिए हम सब के लिए यही संकेत है की एकता के सूत्र को चरितार्थ कर समाज को गौरवान्वित करें.... मनोहर सिंह चौहान, एडवोकेट
Monday, March 14, 2011
चौहान चेतना, अंक- अक्टोबर, नोवंबर, दिसंबर 2010
सम्पादकीय- शुभकामना सन्देश
दीपों के पर्व पर अँधेरा न रहे।
सामाजिक विकास, देश की उन्नति के लिए जरूरी है की प्रत्येक अपनी इच्छा सोच के साथ विकास कार्यों में सहयोग करे। देश की उन्नति में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी निश्चित होती है। दीपावली पर्व खुशियों का पर्व है। इस पर्व पर हम सभी दीपों को प्रज्वलित कर वातावरण को प्रकाशमान करते हैं। इस पर्व पर हमें प्रेरणा लेना होगी की दीपों के प्रकाश की तरह हम भी अज्ञानता, अशिक्षा, कुरीतियों,भेदभाव, इर्ष्या , चापलूसी तिमिर दूर करें। आज मनुष्य लोभ एवं स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट पहुचने में नहीं चूकता। इससे आपसी भाईचारा एवं बंधुत्व की भावना का ह्रास होता है। दीपावली पर्व के दिन हम सभी को मन से प्रयास करना चाहिए की द्वेष भावना से परे एकजुट होकर समाज व देश के विकास में सहयोग करे। समाज में व्याप्त अंधकार अज्ञानता, अशिक्षा तथा कुरीतियों को मिलजुल कर दूर करें।
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना।।
अँधेरा धरा पर कहीं रह ना जाए
इस दीपावली पर्व पर हम सभी को प्रेरणा तथा संकल्प लेना चाहिए की हम सामाजिक कुरीतियों को दूर कर आपसी सौहार्द्र बनाते हुए समाज की खुशहाली बढाने का काम करेंगे। सही मायने में तो जब तक व्यक्ति की अच्छी सोच नहीं होगी, तब तक समाज में अज्ञानता, अशिक्षा तथा फैली कुरीतियों दूर नहीं होंगी और मनुष्य के जीवन में अँधेरा बना ही रहेगा.... सुक्खनलाल चौहान
दीपों के पर्व पर अँधेरा न रहे।
सामाजिक विकास, देश की उन्नति के लिए जरूरी है की प्रत्येक अपनी इच्छा सोच के साथ विकास कार्यों में सहयोग करे। देश की उन्नति में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी निश्चित होती है। दीपावली पर्व खुशियों का पर्व है। इस पर्व पर हम सभी दीपों को प्रज्वलित कर वातावरण को प्रकाशमान करते हैं। इस पर्व पर हमें प्रेरणा लेना होगी की दीपों के प्रकाश की तरह हम भी अज्ञानता, अशिक्षा, कुरीतियों,भेदभाव, इर्ष्या , चापलूसी तिमिर दूर करें। आज मनुष्य लोभ एवं स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट पहुचने में नहीं चूकता। इससे आपसी भाईचारा एवं बंधुत्व की भावना का ह्रास होता है। दीपावली पर्व के दिन हम सभी को मन से प्रयास करना चाहिए की द्वेष भावना से परे एकजुट होकर समाज व देश के विकास में सहयोग करे। समाज में व्याप्त अंधकार अज्ञानता, अशिक्षा तथा कुरीतियों को मिलजुल कर दूर करें।
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना।।
अँधेरा धरा पर कहीं रह ना जाए
इस दीपावली पर्व पर हम सभी को प्रेरणा तथा संकल्प लेना चाहिए की हम सामाजिक कुरीतियों को दूर कर आपसी सौहार्द्र बनाते हुए समाज की खुशहाली बढाने का काम करेंगे। सही मायने में तो जब तक व्यक्ति की अच्छी सोच नहीं होगी, तब तक समाज में अज्ञानता, अशिक्षा तथा फैली कुरीतियों दूर नहीं होंगी और मनुष्य के जीवन में अँधेरा बना ही रहेगा.... सुक्खनलाल चौहान
Saturday, February 12, 2011
Sunday, January 2, 2011
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