वर्तमान की ज्वलंत समस्या
हर माता-पिता चाहे वह अमीर हो या गरीब उनकी एक ही तमन्ना होती है की उसकी संतानें पढ़-लिखकर उन्नति के शिखर पर सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त करें। इसके लिए वे हर प्रकार का त्याग करते हैं। अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई को अपने बच्चों के पालन-पोषण और पढाई-लिखी में खर्च कर देते हैं। किन्तु बच्चे पढ़ लिखकर कैरियर में अच्छा मुकाम हासिल कर लेते हैं तो वे अपने उन्हीं माता-पिता की उपेक्षा करने लगते हैं।
जिन्होंने उनकी उन्नति के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया है। भौतिकवादी संस्कृति के वशीभूत होकर शिक्षित व समर्थ नवयुवक-नवयुवतियों अपने बच्चों के साथ एकल परिवार के रूप में रहना अपनी शान समझते हैं। शायद वे इस सत्य से अनभिग्य हैं की उन्हें भी एक दिन बूढा होना है। वर्तमान की इस ज्वलंत समस्या के चलते असंख्य बूढ़े माता-पिता या तो घर के एक कोने में उपेक्षित पड़े रहते हैं अथवा वृद्धाश्रमों में जाकर शेष दिन काटने के लिए मजबूर हैं। आने वाले समय में यह समस्या विकराल रूप ले इसके पहले समय रहते हम सबको मिलकर वैचारिक क्रांति छेड़नी होगी।
_बी डी सिंह सोलंकी
Friday, March 18, 2011
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